07-03-90   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

रूलिंग तथा कंट्रोलिंग पावर से स्वराज्य की प्राप्ति

अव्यक्त बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले:-

आज बच्चों के स्नेही बापदादा हर एक बच्चे को विशेष दो बातों में चेक कर रहे थे। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरुप बच्चों को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाना है। हर एक में रूलिंग पावर और कंट्रोलिंग पावर कहाँ तक आई है - आज यह देख रहे थे। जैसे आत्मा की स्थूल कर्मेंन्द्रियाँ आत्मा के कंट्रोल से चलती है, जब चाहे, जैसे चाहे और जहाँ चाहे वैसे चला सकते हैं और चलाते रहते हैं। कंट्रोलिंग पावर भी है। जैसे हाथ-पांव स्थूल शक्तियाँ हैं ऐसे मन-बुद्धि संस्कार आत्मा की सूक्ष्म शक्तियाँ हैं। सूक्ष्म शक्तियों के ऊपर कंट्रोल करने की पावर अर्थात् मन-बुद्धि को, संस्कारों को जब चाहें, जहाँ चाहे, जैसे चाहें, जितना समय चाहें - ऐसे कंट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर आई है? क्योंकि इस ब्राह्मण-जीवन में मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी बनते हो। इस समय की प्राप्ति सारा कल्प राज्य रूप और पुजारी के रूप में चलती रहती है। जितना ही आधा कल्प विश्व की राज्य-सत्ता प्राप्त करते हो, उस अनुसार ही जितना शक्तिशाली राज्य पद वा पूज्य पद मिलता है, उतना ही भक्ति-मार्ग में भी श्रेष्ठ पुजारी बनते हो। भक्ति में भी श्रेष्ठ आत्मा की मन-बुद्धि-संस्कारों के ऊपर कंट्रोलिंग पावर रहती है। भक्तों में भी नंबरवार शक्तिशाली भक्त बनते हैं। अर्थात् जिस इष्ट की भक्ति करने चाहें, जितना समय चाहें, जिस विधि से करने चाहें - ऐसी भक्ति का फल, भक्ति की विधि प्रमाण संतुष्टता, एकाग्रता, शक्ति और खुशी को प्राप्त करता है। लेकिन राज्य-पद और भक्ति की शक्ति की प्राप्ति का आधार यह ब्राह्मण जन्म है। तो इस संगमुयग का छोटा-सा एक जन्म सारे कल्प के सर्व जन्मों का आधार है! जैसे राज्य करने में विशेष बनते हो वैसे ही भक्त भी विशेष बनते हो, साधारण नहीं। भक्त-माला वाले भक्त अलग हैं लेकिन आप आपेही पूज्य आपेही पुजारी आत्माओं की भक्ति भी विशेष है। तो आप बापदादा बच्चों के इस मूल आधार जन्म को देख रहे थे। आदि से अब तक ब्राह्मण-जीवन में रूलिंग पावर, कंट्रोलिंग पावर सदा और कितनी परसेन्टेज में रही है। इसमें भी पहले अपनी सूक्ष्म शक्तियों की रिजल्ट को चेक करो। रिजल्ट में क्या दिखाई देता है? इस विशेष तीन शक्तियों - ``मन-बुद्धि-संस्कार'' पर कंट्रोल हो तो इसको ही स्वराज्य अधिकारी कहा जाता है। तो यह सूक्ष्म शक्तियाँ ही स्थूल कर्मेंन्द्रियों को संयम और नियम में चला सकती हैं। रिजल्ट क्या देखी? जब, जहाँ, और जैसे - इन तीनों बातों में अभी यथाशक्ति हैं। सर्वशक्ति नहीं हैं लेकिन यथाशक्ति। जिसको डबल विदेशी अपनी भाषा में समथिंग (Something) अक्षर यूज़ करते हैं। तो इसको आलमाइटी अथॉरिटी  कहेंगे? माइटी तो हैं लेकिन आल हैं? वास्तव में इसको ही ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन कहा जाता है। जिसका जितना स्व पर राज्य है अर्थात् स्व को चलने और सर्व को चलाने की विधि आती है, वही नंबर आगे लेता है। इस फाउण्डेशन में अगर यथाशक्ति है तो ऑटोमैटिकली नंबर पीछे हो जाता है। जिसको स्वयं को चलाने और चलने आता है वह दूसरों को भी सहज चला सकता है अर्थात् हैंडलिंग  पावर आ जाती है। सिर्फ दूसरे को हैंडलिंग करने के लिए हैंडलिंग  पावर नहीं चाहिए। जो अपनी सूक्ष्म शक्तियों को हैंडिल कर सकता है। वह दूसरों को भी हैंडिल कर सकता है। तो स्व के ऊपर कंट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर सर्व के लिए यथार्थ हैंडलिंग  पावर बन जाती है। चाहे अज्ञानी आत्माओं को सेवा द्वारा हैंडिल करो, चाहे ब्राह्मण-परिवार में स्नेह सम्पन्न, संतुष्टता सम्पन्न व्यवहार करो - दोनों में सफल हो जायेंगे। कयोंकि कई बच्चे ऐसे हैं जो बाप को जानना, बाप का बनना और बाप से प्रीत की रीति निभाना - यह बहुत सहज अनुभव करते हैं लेकिन सभी ब्राह्मण-आत्माओं से चलना - इसमें समथिंग कहते हैं। इसका कारण क्या? बाप से निभाना सहज क्यों लगता है? क्योंकि दिल का प्यार अटूट है। प्यार में निभाना सहज होता है। जिससे प्यार होता है उसका कुछ शिक्षा का इशारा मिलना भी प्यारा लगता है और सदैव दिल में अनुभव होता है कि जो कुछ कहा मेरे कल्याण के लिए कहा। क्योंकि उसके प्रति दिल की श्रेष्ठ भावना होती है। तो जैसे आपके दिल में उनके प्रति श्रेष्ठ भावना है, वैसे ही आपकी शुभभावना का रिटर्न दूसरे द्वारा भी प्राप्त होता है। जैसे गुम्बज में आवाज करते हो तो वही लौटकर आपके पास आती है। तो जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है - ऐसे ब्राह्मण-आत्माएं नंबरवार होते हुए भी आत्मिक प्यार अटूट, अखण्ड है? वैराइटी चलन, वैरायटी संस्कार देखकर प्यार करते हैं वह अटूट और अखण्ड नहीं होता है। किसी भी आत्मा की अपने प्रति वा दूसरों के प्रति चलन अर्थात् चरित्र वा संस्कार दिल-पसंद नहीं होंगे तो प्यार की परसेन्टेज कम हो जाती है। लेकिन आत्मा का श्रेष्ठ आत्मा के भाव से आत्मिक प्यार उसमें परसेन्टेज नहीं होती है। कैसे भी संस्कार हों, चलन हो लेकिन ब्राह्मण-आत्माओं का सारे कल्प में अटूट सम्बन्ध है, ईश्वरीय परिवार है। बाप ने हर आत्मा को विशेष चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है। अपने-आप नहीं आये हैं, बाप ने लाया है। तो बाप को सामने रखने से हर आत्मा से भी आत्मिक अटूट प्यार हो जाता है। किसी भी आत्मा की कोई बात आपको पसंद नहीं आती तब ही प्यार में अन्तर आता है। उस समय बुद्धि में यही रखो कि इस आत्मा को बाप ने पसंद किया है, अवश्य कोई विशेषता है तब बाप ने पसंद किया है। शुरू से बापदादा बच्चों को यह सुनाते रहते हैं कि मानों 36 गुणों में किसमें 35 गुण नहीं हैं लेकिन एक गुण भी विशेष है तब बाप ने उनको पसंद किया है। बाप ने उनके 35 अवगुण देखे वा एक ही गुण देखा? क्या देखा? सबसे बड़े-ते-बड़ा गुण वा विशेषता बाप को पहचानने की बुद्धि, बाप के बनने की हिम्मत, बाप से प्यार करने की विधि है जो सारे कल्प में धर्म-पिताओं में भी नहीं थी, राज्य नेताओं में भी नहीं, धनवानों में भी नहीं लेकिन उस आत्मा में हैं। बाप आप सबसे पूछते हैं कि आप जब बाप के पास आये तो गुण सम्पन्न हो के आये थे? बाप ने आपकी कमजोरियों को देखा क्या? हिम्मत बढ़ाई है ना कि आप ही मेरे थे, हैं और सदा बनेंगे। तो फालो फादर करो ना! जब विशेष आत्मा समझ किसको भी देखेंगे, सम्बन्ध-सम्पर्क में आयेंगे तो बाप को सामने रखने से आत्मा में स्वत: ही आत्मिक प्यार इमर्ज हो जाता है। आपके स्नेह से सर्व के स्नेही बन जायेंगे और आत्मिक स्नेह से सदा सभी द्वारा सद्भावना,  सहयोग की भावना स्वत: ही आपके प्रति दुआओं के रूप में प्राप्त होगी। इसको कहते हैं। रूहानी यथार्थ श्रेष्ठ हैंडलिंग।

बापदादा आज मुस्कारा रहे थे। बच्चों में तीन शब्दों के कारण कंट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर कम हो जाती है। वह तीन शब्द हैं - 1. व्हाई (WHY, क्यों), 2.वाट (WHAT, क्या), 3. वान्ट (WANT, चाहिए)। यह तीन शब्द खत्म कर एक शब्द बोलो। व्हाई आये तो भी एक शब्द बोलो - वाह, व्हाट शब्द आये तो भी बोलो ``वाह''। ``वाह'' शब्द तो आता है ना। वाह बाबा, वाह मैं और वाह ड्रामा। सिर्फ ``वाह'' बोले तो यह तीन शब्द खत्म हो जायेंगे। उस दिन भी सुनाया ना कि बापदादा ने कौन सा खेल देखा! आप लोगों का एक चित्र पहले का बनाया हुआ है जिसमें दिखाया है - योगी योग लगा रहा है, बुद्धि को एकाग्रचित कर रहा है, बैलेंस रख रहा है, बैलेंस की तराजू दिखाई है, जितना बुद्धि का बैलेंस करता उतना कोई बन्दर आकर बैठ जाता है। इन तीनों बातों का बन्दर आ जाते हैं तो बैलेंस क्या होगा! हलचल हो जायेगी, बैलेंस नहीं रहेगा। तो यह तीन शब्द बैलेंस को समाप्त कर देते हैं, बुद्धि को नचाने लगते हैं। बन्दर आराम से बैठ सकता है क्या? और कुछ नहीं हो तो पूंछ को ही हिलाता रहेगा। तो इसमें भी बैलेंस न होने के कारण बाप द्वारा हर कदम में जो दुआयें मिलती हैं वा आत्मिक स्नेह कारण परिवार द्वारा जो दुआयें मिलती हैं उससे वंचित हो जाते हैं। जैसे बाप से सम्बन्ध रखना अवश्यक है, ऐसे ईश्वरीय परिवार से सम्बन्ध रखना भी अति अवश्यक है। सारे कल्प में नम्बरवन आत्मा ब्रह्मा बाप और ईश्वरीय परिवार के सम्बन्ध-सम्पर्क में आना है। ऐसे नहीं समझना - अच्छा, बाप तो हमारा है, हम बाप के है। यह भी पास विद ऑनर की निशानी नहीं है। क्योंकि आप सन्यासी आत्माएं नहीं हो। ऋषि-मुनि की आत्माएं नहीं हो। किनारा करने वाले नहीं हो लेकिन विश्व का सहारा बनने वाली आत्माएं हो। विश्व-किनारा नहीं, विश्व-कल्याणकारी हो। ब्राह्मण-आत्माओं की तो बात छोड़ों लेकिन प्रकृति को भी परिवर्तन करने के सहारे आप हो! परिवार के अविनाशी प्यार के धागे के बीच से निकल नहीं सकते हो। विजयी रत्न प्यार के धागे के बीच से निकल नहीं सकते। इसलिए कभी भी किसी भी बात में, किसी स्थान में, किसी सेवा से, किसी साथी से किनारा करके अपनी अवस्था को अच्छा बनाके दिखाऊं - यह संकल्प नहीं करना। कहते हैं ना - हम इसके साथ नहीं चल सकते, उसके साथ चलेंगे, इस स्थान पर उन्नति नहीं होगी, दूसरे स्थान पर होगी, इस सेवा में विघ्न है, दूसरी सेवा में अच्छा होगा। यह सब किनारा करने की बातें हैं। अगर एक बार यह आदत आपने में डाली तो यह आदत आपको कहाँ भी टिकने नहीं देगी, बुद्धि को एकाग्र रहने नहीं देगी। क्योंकि बुद्धि को बदलने की आदत पड़ गई। यह भी कमजोरी गिनी जायेगी, उन्नति नहीं गिनी जायेगी। सदैव अपने में शुभ उम्मीदें रखो, नाउम्मीद नहीं बनो। जैसे बाप ने हर बच्चे में शुभ उम्मीदें रखी। कैसे भी हैं, बाप लास्ट नंबर से भी कभी दिलशिकस्त नहीं बने। सदा ही उम्मीद रखी। तो आप भी न अपने से, न दूसरे से, न सेवा में नाउम्मीद, दिलशिकस्त नहीं बनो। दिलशाह बनो। शाह माना फ्राकदिल, सदा बड़ी दिल। कोई भी कमजोर संस्कार नहीं धारण करो। माया भिन्न-भिन्न रूप से कमजोर बनाने का प्रयास करती है। लेकिन आप माया के भी नॉलेजफुल हो, ना कि अधूरी नॉलेज है? यह भी याद रखो कि माया नये-नये रूप में आती है, पुराने रूप में नहीं। क्योंकि वह भी जानती है कि यह पहचान लेंगे। बात वही होती है लेकिन रूप नया धारण कर लेती है। समझा! अच्छा!

टीचर्स माया के नॉलेजफुल हो? सिर्फ नॉलेज नहीं लेकिन नॉलेजफुल हो? बाप को पहचान लिया - सिर्फ यह नहीं सोचो, माया को भी पहचानना है। अभी बंधन में बंध गई हो वा कठिन लगता है? मीठा बंधन लगता या थोड़ा मुश्किल बंधन लगता? सोचते हो - यह तो बहुत मरना पड़ेगा, बाप के बन गये अब फिर यह करना है, यह करना है, कहाँ तक करेंगे! अगर यह पता होता तो आते ही नहीं - ऐसा सोच चलता है? जहाँ प्यार है वहाँ कोई मुश्किल नहीं। पतंगा भी शमा पर कुर्बान हो जाता है। तो आप श्रेष्ठ आत्माएं परमात्म-प्यार के पीछे मुश्किल अनुभव कर सकती हो क्या? जब परवाना कुर्बान हो सकता है तो आप क्या नहीं कर सकती? जिस घड़ी मुश्किल अनुभव होता है तो जरूर प्यार की परसेन्टेज में अन्तर आ जाता है, इसलिए कुछ समय मुश्किल लगता है। अगर होवे ही मुश्किल तो सदा मुश्किल लगना चाहिए, कभी-कभी क्यों मुश्किल लगता? परमात्मा और आपके बीच में कोई बात आ जाती है, इसलिए मुश्किल हो जाता है और परसेन्टेज में फर्क पड़ जाता है। वह बीच से निकाल दो तो फिर सहज हो जाए।

बापदादा सदा कहते हैं टीचर्स अर्थात् सदा स्वयं हिम्मत में रहने वाली और दूसरों को हिम्मत देने के निमित्त बनने वाली। नहीं तो टीचर बनी क्यों? टीचर माना ही स्टूडेन्ट के निमित्त हैं। कमजोर को हिम्मत दे आगे बढ़ाने की सेवा के निमित्त हो। सफल टीचर की पहली निशानी यह होगी - वह कभी हिम्मतहीन नहीं बनेंगी। जो खुद हिम्मत में रहता है वह दूसरे को भी हिम्मत जरूर देता है। खुद में ही हिम्मत कम होगी तो दूसरे को भी नहीं दे सकेंगे। अच्छा!

चारों ओर के हिम्मते बच्चे मददे बाप के अधिकार को अनुभव करने वाले, सदा स्वराज्य की शक्तियों को हर समय प्रमाण प्रयोग में लाने वाले, सदा बाप और सर्व आत्माओं के अटूट स्नेही, सदा हर कार्य में, सम्बन्ध-सम्पर्क में ``वाह-वाह'' के गीत गाने वाले, ऐसी आलमाइटी अथॉरिटी  बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

डबल विदेशी भाई-बहनों के ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सभी अपने को सदा भाग्यवान आत्मा समझते हो? वो लोग तो अपने भाग्य की प्राप्ति के लिए कितना साधन अपनाते हैं! कभी सोचेंगे - पुत्रवान बन जाएं, कभी सोचेंगे - धनवान बन जाएं, कभी सोचेंगे – आयुष्वान बन जाएं। और मांगते भी किससे हैं? बाप से और आप पूज्य आत्माओं से। क्योंकि आप श्रेष्ठ आत्मओं को भाग्य देने वाला स्वयं भाग्यविधाता बाप है। आपका तो मांगना पूरा हो गया ना। या कभी-कभी थोड़ा मांगते हो? मेरा नाम हो, मेरा शान हो - यह भी नहीं। स्वमान मिल गया। उसके आगे यह अल्पकाल का मान क्या है! यह भी मांगने का संकल्प नहीं आता, मांगना खत्म हो गया ना? ज्ञानी तू आत्मा हो गये ना, भक्त तू आत्मा नहीं। कमजोर आत्मा को भी बापदादा भक्त कह देते हैं तो आप ऐसे भक्त भी नहीं हो ना! बुद्धिवान हो। ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् बुद्धिवान आत्मा। इच्छा मात्रम् अविद्या - ऐसी आत्माएं हो ना? बिना मांगे सब मिलता है, मांगने की क्या आवश्यकता है। कोई कमी होती है तो मांगना पड़ता है। अगर स्वयं ही सर्व प्राप्ति हो जाएं तो मांगने का संकल्प भी नहीं उठेगा। ऐसे इच्छा मात्रम् अविद्या अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा। एक साथ सब कुछ दे दिया, एक-एक कहने की जरूरत ही नहीं। क्योंकि बाप जानते हैं इन्हों को मांगने भी नहीं आता। थोड़ी-थोड़ी चीज में ही खुश हो जाते हैं। अभी तो मांगने वाले से दाता के बच्चे मास्टरदाता बन गये। जो बाप से मिला है वह इतना मिला है कि मास्टरदाता बन गये। ऐसे हैं ना? सभी पक्के हो ना? जब बाप सर्वशक्तिवान् हैं तो बच्चे कच्चे कैसे होंगे? माया कितनी भी कोशिश करे - कच्चे नहीं बना सकती। क्योंकि आप दूर से ही जान लेते हो कि माया आ रही है। डोंट केयर। वह भी पहचान जाती है कि यह मास्टर सर्वशक्तिवान् हैं, यहाँ काम नहीं होगा। तो खुद ही वापस चली जाती है। मायाके रूप में वार नहीं कर सकती। वह सफलता की माला बन जाती है। तो सभी ऐसे विजयी हो? पांडव अर्थात् विजयी। कभी कुछ भी देखो-सुनो तो अपने-आपसे बात करो कि मैं वही पांडव हूँ, अनेक बार की विजयी हूँ। यही खुशी है ना? यह भी आता है या नॉलेज के आधार से कहते हो? ऐसे तो नहीं कि बाप कहते हैं तो जरूर होगा ही! आत्मा में जो रिकार्ड भरा हुआ है वह इमर्ज होता है ना? अच्छा! सभी खुशी के झूले में झूलने वाले हो ना? बाप ने ऐसा झूला दे दिया है जिसके लिए जगह की आवश्यकता नहीं, जहाँ चाहो वहाँ लगाओ, सिर्फ स्मृति में ही लाना है। इसलिए सहज है। इसमें थकावट भी नहीं होती, खुशी का झूला है ना। खुशी में थकावट नहीं होती। ब्राह्मण जन्म ही खुशी के झूले में हुआ है और जायेंगे भी तो खुशी के झूले में झूलते-झूलते जायेंगे। ऐसे ही जायेंगे या दर्द में जायेंगे? ऐसे तो नहीं समझेंगे - हाय कर्मबंधन, कर्मभोग बहुत कड़ा है! चाहे कितना भी कड़ा हिसाब हो लेकिन आप चुक्तू करने वाले हैं। तो चुक्तू का सदा नशा रहता है। कितना भी पुराना कड़ा हिसाब हो, लेकिन जब चुक्तू होता है तो खुशी होती है। ऐसे हिम्मत है या घबरा जायेंगे? थोड़ा-सा दर्द होगा तो घबरायेंगे तो नहीं? जब परमात्मा के प्यारे बन गये तो उसे खुशी होगी ना। अच्छा!

2. रूहानी दृष्टि मिलते ही सृष्टि बदल गई ना! रूहानी दृष्टि से अपने-आपको देखा - मैं कौन और बाप को देखा कि वही हमारा बाप है। इसमें सृष्टि बदल गई। पूरी सृष्टि बदली है या थोड़ी-थोड़ी कभी छिप-छिपकर पुरानी सृष्टि देख लेते हो? कभी स्वप्न में पुरानी दुनिया आती है? स्वप्न भी बदल गये। क्योंकि ब्राह्मण-जीवन अर्थात् सृष्टि ही बदल गई। बाप ही संसार बन गया! और कुछ है क्या? संसार में विशेष दो प्राप्ति हैं - एक है व्यक्ति, दूसरी है वस्तु। तो बाप ने सर्व सम्बन्ध के रूप में संसार में जो चाहिए वह दे दिया। सर्व सम्बन्ध बाप से अनुभव होते हैं? या कोई सम्बन्ध व्यक्ति से रह गये हैं? और वस्तु से क्या मिला है? खुशी मिलती है, सुख मिलता है। बाप ने अविनाशी प्राप्ति कराई है। तो प्राप्ति का अनुभव होता है? वैसे भी देखो - किसी भी आत्मा से मिलते हैं, अगर कोई सदा खुश रहने वाला होता है तो वो चेहरा अच्छा लगता है या जो खुश नहीं होता है वह अच्छा लगता है? आप सदा चियरफुल रहते हो? नशे से कहो - हम नहीं खुश होंगे तो कौन खुश रहेगा? बापदादा हर एक बच्चे का खुश चेहरा देखना चाहते हैं। आपको भी वही पसंद है तो बाप को भी वही पसंद है। इसलिए बापदादा कहते हैं कि यह गीत सदा गाते रहो - ``पाना था वो पा लिया, काम बाकी क्या रहा!'' यह गीता आपका है ना! बापदादा ने ब्राह्मण जन्म होते ही सबको बड़े-ते-बड़ा खज़ाना ``खुशी'' दी। यह ब्राह्मण जन्म की गिफ्ट है। सिर्फ संभालने में कभी-कभी अलबेले हो जाते हो तब सदा नहीं होता है। बापदादा के पास बच्चों के लिए ही यह खज़ाने हैं। जिसको जितना चाहिए उतना मिलता है, हिसाब की बात नहीं है। सबका पूरा अधिकार है। अच्छा!

बापदादा ने विदाई के समय सभी बच्चों को होली की मुबारक दी

होली बच्चों के लिए सदा होली है। सदा ही ज्ञान-रंग में रंगे हुए हो, इसलिए खास रंग लगाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। ये लोग तो लगाते भी नहीं हैं ना। फॉरेन में नहीं लगाते हो। वह तो हुआ मनोरंजन। बाकी रंग में रंगकर मिक्की माउस नहीं बनना है। सदा होलीहंस हो,  होली रहने वाले हो और होली मनाने वाले हो। औरों को भी होली बनाने का रंग डालते हो। सभी बच्चों को हाली की मुबारक हो और साथ-साथ उमंग-उत्साह वाली जीवन में उड़ने की भी मुबारक हो। अच्छा!